यदि आप वामपंथी हैं, सेक्यूलरवाद की बीमारी से पीडि़त हैं या पेड मीडिया...सॉरी 'प्रेस्टीट्यूट' हैं तो आप मोदी लहर को नहीं देख पाएंगे, न ही उसकी आहट ही सुन पाएंगे और रही महसूस करने की बात तो अब तो नींद ही इसकी दे रही होगी कि आप रात-रात भर जग कर कुतर्कों का कूड़ा दिमाग में इकटठा करने के लिए कितने जतन कर रहे होंगे! मोदी यही तो चाहते हैं कि आप मतलब 'वामपंथी', 'सेक्यूलर डायरिया' के शिकार और मीडिया में बैठकर दल्लागिरी से आगे निकलकर वेश्यावृत्ति करने वाले 'प्रेस्टीटयूट' उन्हें कोसें! यही तो उनकी खुराक है, जो 2002 से लेते आ रहे हैं और मजबूत होते चले जा रहे हैं!

जो टेलीविजन चैनलों के एसी स्टूडियो में बैठकर आप नहीं समझे, वो देश की जनता कब की समझ गई है, अन्यथा पूरे देश में मतों का प्रतिशत एक समान ढंग से नहीं बढता! स्टूडियो में बैठकर 'चकल्लस' करने से पहले जरा आंकडों पर गौर कर लेते तो देखते कि जिन प्रदेशों में विधानसभा चुनाव हुए, उन्हें मिलाकर औसतन पांच फीसदी वोटों का इजाफा हुआ है। कुछ ऐसा था, जो एक समान पूरे देश के मतदाताओं को घर से निकलने के लिए बाध्य कर रहा था, खासकर नए मतदाताओं को। जरा पिछले कुछ महीनों के मोदी के भाषणों और टवीट को ही सर्च कर लेते, जिसमें वो लगातार युवाओं से अपना वोट बनवाने और अपना वोट देने की अपील कर रहे थे। हो सकता है, देखा भी होगा, लेकिन अहंकार के कारण उसकी चर्चा ही नहीं करना चाहते होंगे!
जनाब आप ये तो मानेंगे ही न कि पहली बार मोदी ने 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा दिया और इन चार राज्यों के चुनाव ने दर्शा दिया कि देश अब उसी रास्ते पर बढ चला है। राजस्थान को उठा लीजिए...वहां अतीत की किसी भाजपा सरकार ने तीन चौथाई बहुमत का आंकडा नहीं छुआ था। भैरों सिंह शेखावत के जमाने में भी जब राजस्थान में भाजपा की सरकार बनी थी तो जोड तोड करने के बाद ही बनी थी। 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार चल रही थी, लेकिन वसुंधरा राजे सिंधिया के नेतृत्व में भाजपा राजस्थान में 115 के आसपास ही पहुंची थी और इस बार भी पोलिटिकल पंडितों का आकलन इससे या इससे थोडा ही आगे जाने का था।
महोदय क्या आपने कभी आकलन किया था कि कांग्रेस 200 विधानसभा वाले राज्य में सत्ता में रहते हुए केवल 21 सीटों पर सिमट जाएगी? 82 फीसदी सीटों पर उसका सफाया हो गया है, क्या यह कम बड़ी बात है? इन तीनों विचारधारा के लोग बेचारे अशोक गहलोत की इतनी बुरी हार को पचा ही नहीं पा रहे हैं। वे कहते हैं कि मैं मान ही नहीं सकता कि राजस्थान में कांग्रेस की लागू की गई सामाजिक योजना सही नहीं थी। फिर बेचारों को लगता है कि इस कुतर्क के लिए भाजपा समर्थन कहीं मोदी लहर न समझ जाएं तो मोदी फोबिया से ग्रस्त होकर वे कहते हैं कि यदि राजस्थान में मोदी लहर थी तो पूरे देश में क्यों नहीं थी, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के सामने वो बेअसर क्यों हो गई।
पहली बात तो यह कि जिसे वो अच्छी योजना बता रहे हैं वह आज की जनता की नजरों में 'खैरात' और 'भीख' बन गई है, जो उनके स्वभिमान पर चोट पहुंच रही है। मोदी अपने भाषणों में आम जनता के स्वाभिमान को ही तो जगा रहे हैं, जिससे कांग्रेस की खैराती योजनाएं फलॉप साबित हो रही हैं। गुजरात का अध्ययन कर लेते। दूसरी, बात यदि मोदी लहर नहीं होती तो सच मानिए, अरविंद केजरीवाल की 'आम आदमी पार्टी' दिल्ली में 50 सीटों पर जीत जाती। आज जो हालत दिल्ली में कांग्रेस की हुई है, उससे थोडी ही ठीक भाजपा की होती, लेकिन वह भी 15 सीटों से ऊपर नहीं पहुंच सकती थी। याद रखिए, शीला और कांग्रेस के पूरे मंत्रीमंडल को अरविंद केजरीवाल की व उनकी पार्टी ने हराया है, भाजप ने नहीं। मोदी के कारण भाजपा अपने कोर वोटरों व और कुछ युवा वोटरों को अपनी ओर लाने में कामयाब रही है, जो पिछले 15 साल में दिल्ली में उससे दूर जा चुकी थी या फिर मतदान के प्रति उदासीन हो चुकी थी।
'मोदी इफेक्ट' दिल्ली भाजपा के संगठन से लेकर जनता तक में दिखा। यह 'मोदी इफेक्ट' ही था, जिसके कारण विजय गोयल को हटाकर डॉ हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया गया था। मोदी ने स्पष्ट कह दिया था कि विजय गोयल के पोस्टर पर मेरी तस्वीर नहीं रहेगी। संकेत साफ था। और हां..आप डॉ हर्षवर्धन को लाने को अरविंद केजरीवाल इफेक्ट मत कह दीजिएगा क्योंकि डॉ हर्षवर्धन का नाम पिछले साल भी मुख्यमंत्री की रेस में सबसे आगे था, लेकिन पार्टी की गुटबाजी के कारण विजय कुमार मल्होत्रा को आगे करना पडा था और यही गुटबाजी इस बार भी थी। हर कोई जानता है कि विजय गोयल भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के करीब थे और राजनाथ सिंह कभी उन्हें हटाना नहीं चाहते थे। वो बिना चेहरे के चुनाव मैदान में उतरने तक को तैयार हो गए थे। आज यदि राजनाथ सिंह की चलती तो कांग्रेस की तरह भाजपा का भी 'आप' की लहर में सफाया हो गया होता।
दूसरी बात, अरविंद केजरीवाल व उनकी आम आदमी पार्टी ने मोदी लहर को नजदीक से समझ लिया था। उनकी पार्टी की ओर से स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि पार्टी का कोई कार्यकर्ता मोदी को गाली न दे, इससे खुद के चुनाव पर असर पड़ेगा। यही नहीं, सर्वे के उस्ताद योगेंद्र यादव ने सर्वेक्षण का नया दांव चला था, जिसमें यह दर्शाया गया कि उनकी पार्टी के समर्थकों में से ही 50 फीसदी लोग मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं और अरविंद को मुख्यमंत्री। अब इस सर्वे की चाल के कारण उन्होंने मोदी के कारण जो मत दिल्ली भाजपा को पड़ना था, उसे रोक कर अपनी ओर मोड़ने में सफलहा हासिल कर ली। उपरोक्त तीनों विचारधारा के लोग इस सर्वे जारी करने को 'आप' की ईमानदारी बताते रहे और मोदी समर्थक इसे लेकर खुश होते रहे, लेकिन इसके जरिए अरविंद ने जो वार किया, वह विधानसभा में भाजपा को मत देने वाले मतदाताओं की कुछ संख्या को रोकने में सफल रहा।
इसे समझाने के लिए एक आम आदमी का ही आकलने आपके सामने देता हूं। एक फेसबुकयूजर जितेंद्र ने अपने वॉल पर लिखा है, 'आप' की जीत का सबसे बड़ा राज ये है की इन्होंने नरेंद्र मोदी पर हमला नही किया, बल्कि स्थानीय मुद्दों को लोगों के बीच उठाया। 'आप' के जिन लोगों ने मोदी को कोसा वो हारे, जैसे कि शाजिया इल्मी और गोपाल राय। ये दोनों हर बात में नरेंद्र मोदी को कोसते थे। चुनाव से कुछ समय पहले केजरीवाल और आप पार्टी के ट्विटर एकाउंट पर ट्विट करके 'आप' के समर्थको से अपील किया गया था की वो नरेंद्र मोदी के बारे में कुछ गलत न बोलें। इतना ही नही बल्कि दिल्ली में कई जगह "आम आदमी पार्टी" ने बैनर लगाया था की "मोदी फॉर पीएम .. केजरीवाल फॉर सीएम"। अब भी मत समझिएगा, क्योंकि 'झूठ की खेत' में ही तो वामपंथी, सूडो सेक्यूलरवादी और दल्ली मीडिया की पौध पनपती।
अब आइए मध्यप्रदेश। यहां आप लोग नरेंद्र मोदी बनाम शिवराज सिंह चौहान का मुदृा उठाकर 'खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे' की तरह अपनी गत बना रहे हैं। शिवराज सिंह के अच्छे प्रशासन के कारण उन्हें बहुमत और उससे अधिक सीटें मिली है, लेकिन उसके आगे जो आज दो तिहाई बहुमत आप देख रहे हैं वह मोदी लहर का ही असर है। वर्ना 10 साल सत्ता में रहते हुए और कई मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप और कुछ हद तक सत्ता विरोधी लहर की संभावना के बावजूद दो तिहाई बहुमत तक पहुंचना क्या कम लगता है आप लोगों को। और महोदय यह भी बता दूं कि मध्यप्रदेश में नरेंद्र मोदी ने साढ़े तीन दिन में 14 सभाएं की थी और जहां-जहां सभा की थी, उन सभी स्थानों पर भाजपा ने जीत हासिल कर ली है। बीबीसी के एक विश्लेषक ने लिखा भी है कि मध्यप्रदेश में यदि जित का श्रेय 75 फीसदी शिवराज को जाता है तो 25 फीसदी मोदी लहर को।
अब आइए छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ में जिस तरह से नक्सलियों ने स्थानीय कांग्रेस नेतृत्व का पूरी तरह से सफाया कर दिया, उसका असर बस्तर इलाके में कांग्रेस के पक्ष में पड़े सहानुभूति मतों में झलकता है। कांग्रेस के पक्ष में इस सहानुभूति लहर के कारण भाजपा का वहां से एक तरह से सफाया ही हो जाना था, लेकिन मैदानी इलाके ने इसे काउंटर कर दिया और छत्तीसगढ़ में भाजपा की सत्ता बच गई। 10 साल के शासन के बावजूद डॉ रमन सिंह सरकार ने पिछली बार के 50 की जगह इस बार 49 सीटें लाई, लेकिन मोदी लहर ने सत्ता बचा लिया।
जानता हूं, मोदी फोबिया के कारण आपलोग 'सो' और 'सोच' दोनों नहीं पा रहे होंगे। तो आपको थोड़ा और परेशान कर बता दूं कि 589 सीटों पर हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में 408 सीटें गई है। इसे यदि लोकसभा सीटों में बदलें तो करीब 72 लोकसभा सीटों में से 65 पर भाजपा जीती है। भाजपा के इतिहास में कभी ऐसा प्रदर्शन हुआ था क्या। अब 2003 का 'वीत राग' मत छेडि़एगा। उस वक्त भाजपा दिल्ली में नहीं आई थी और न ही उसकी इतनी सीटें ही दिल्ली में आई थी और हां, राजस्थान व मध्यप्रदेश में भी इतनी सीटें नहीं आई थी जबकि उस समय केंद्र में भाजपा के सबसे बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार थी।
बीबीसी लिखता है, यह आश्चर्य की बात है कि राजस्थान में अशोक गहलोत और दिल्ली में शीला दीक्षित की सरकार को सत्ता विरोधी जिस लहर ने डुबोया, वह मध्य प्रदेश में तो बिल्कुल भी कारगर नहीं रही। उलटे शिवराज सिंह के समर्थन में सत्ता-समर्थक लहर ने भाजपा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया।
मध्य प्रदेश में जहां मोदी का प्रचार भाजपा की जीत के अंतर और आंकड़े में इजाफा करने वाला तत्व साबित हुआ, वहीं छत्तीसगढ़ में इसने भाजपा को वह संबल दिया, जिसकी जरूरत कांग्रेस के आक्रामक अभियान तथा सत्ता-विरोधी माहौल से जूझने के लिए रमन सिंह को थी।
वामपंथी, सेक्यूलर डायरिया से पीडि़त और 'प्रेस्टीटयूट' महोदय, आपको तो 2014 तक मोदी विरोध का झंडा उठाने का ठेका मिला है! अभी से आप पस्त जो जाएंग तो आपका क्या होगा...तो लगे रहिए...ईश्वर आपके 'कुतर्क शास्त्र' में बढोत्तरी करे!
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